राम प्रकाश यादव
हमारे देश में अनुच्छेद 123 के तहत यह संवैधानिक व्यवस्था की गई है कि कोई बहुत महत्वपूर्ण विषय हो, उस पर राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है। इसी उपबंध का प्रयोग करते हुए 5 जून 2020 को कृषि संबंधित तीन अध्यादेश जारी किए जो इस प्रकार हैं-
1- आवश्यक वस्तु (संसोधन) विधेयक 2020
2- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020
3- कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर हां करार विधेयक 2020
इन विधेयको से चर्चा करने से पहले हम दो बातों पर चर्चा करना चाहता हूं-- एपीएमसी एक्ट
- एमएसपी
आजादी के बाद हमारे देश के किसानों की स्थिति बड़ी दयनीय थी। वो बिचौलियों और जमींदारों के चंगुल में फंसा हुआ था जो भी अपनी फसलों का उत्पादन करता था वह इन्हीं जमीदारों व बिचौलियों को कम दाम पर बेच देता था। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार ने एपीएमसी एक्ट-1970 (APMC ACT 1970) के दशक में लाई। इस एक्ट के तहत किसान अपनी उपज को सीधे मण्डियों में बेच सकता था।
जिस पर मण्डियों में टैक्स लिया जाता था तथा खरीददारी आढ़तियों के माध्यम से होती थी। यहां थोक व्यापारियों का बोलबाला था। कुछ मामलों में आढ़तियों द्वारा शोषण भी किया जाता था। इस एक्ट के तहत किसानों को लाभ यह हुआ कि उन्हें अपनी फसल बेचने के लिए मंडियां उपलब्ध हुई। इससे किसानों ने अपना उत्पादन बढ़ाया और हरितक्रांति का सूत्रपात हुआ।
एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य)
एमएसपी के अंतर्गत भारत सरकार ने 23 प्रकार की फसलों को सम्मिलित किया गया। इस एक्ट के तहत भारत सरकार यह गारंटी करती है कि हम इस न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदेंगे। यह कीमत फसल बोने से पहले ही सुनिश्चित कर दी जाती है। इसके द्वारा खरीदा गया अनाज एफसीआई (FCI) गोदाम में इकट्ठा किया जाता है। दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत में केवल छह प्रतिशत किसान ही इसका लाभ उठा पाते हैं विशेषकर पंजाब व हरियाणा के किसान।
अब बात करते है वर्तमान सरकार द्वारा पारित विधेयकों पर-
1- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत उपभोक्ताओं को अनिवार्य वस्तुओं की उचित कीमत और आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा व्यापारियों के शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था। इस अधिनियम के तहत अधिकांश शक्तियां राज्य सरकारों को ही दी गई थी। इसके तहत कोई भी व्यापारी एक निश्चित सीमा से अधिक इकट्ठा नहीं कर सकता था। लेकिन आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 के तहत कोई भी पेनकार्ड धारक आवश्यक वस्तुओं को असीमित भंडारण कर सकता है अर्थात भंडारण की कोई सीमा नहीं होगी।
सरकार का मानना है कि इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत मिलेगी। किसानों और आम नागरिकों के मन में यह आशंका है कि जब किसान की फसलें तैयार होंगी तो व्यापारी उन्हें अपने मनमाने दामों पर खरीदेंगे और उन्हें स्टाक करेंगे और बाद में अपने मनमाने दामों पर बेचेंगे। उस समय अनाज केवल बड़े व्यापारियों की गोदामों में होगा, किसानों के पास नहीं। जिसके कारण आम नागरिक को उसे व्यापारियों के मनमाने दामों पर अनाज खरीदना पड़ेगा, जिससे देश में महंगाई बढ़ेगी न उत्पादक (किसान) को और न ही उपभोक्ता(आम नागरिक) को लाभ होगा। इसका सीधा लाभ केवल बड़े व्यापारियों को होगा।
2- कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (सवंर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020
इस विधेयक के अंतर्गत किसान अपनी उपज मंडी से बाहर भेज सकते हैं अर्थात किसानों को उनकी उपज की विक्रय की स्वतंत्रता प्रदान की गई। राज्य के भीतर या बाहर या देश के किसी स्थान पर किसान अपनी फसल निर्बाध रूप से बेच सकता है। सरकार का मानना है कि इससे परिवहन लागत में कमी आएगी और किसानों को अधिक लाभ होगा। ई-ट्रेडिंग के माध्यम से किसान को उपज की बिक्री के लिए ज्यादा सुविधाजनक तंत्र उपलब्ध होगा। किसानों से संगठित रिटेलरों और निर्यातकों से सीधा संबंध होगा और वह बिचौलियों से बच सकेंगे।
लेकिन किसानों और व्यापारियों के मन में यह आशंका है कि यदि मंडी से बाहर समांतर मंडिया होंगी जिसमें कोई टैक्स भी नहीं देना होगा तो मंडियां समाप्त हो जाएगी। उसी तरह धीरे-धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली भी समाप्त हो जाएगी। जब सरकारी मंडियां समाप्त हो जाएंगे तो निजी मंडियों के लोग किसानों की उपज को मनमाने मूल्यों पर लेंगे।
3- कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधायक 2020
इस विधि के अंतर्गत कृषकों से व्यापारी, कंपनी, प्रसंस्करण इकाइयां सीधे करार करेंगी और यही लोग बीज, खाद लागत किसानों को उपलब्ध कराएंगे। किसान और उनके बीच मूल्य का भी करार होगा। सरकार का मानना है कि बाजार को अनिश्चितता से कृषकों को बचाना, बाजार की कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव किसानों पर नहीं पड़ेगा।
विपणन लागत कम करके किसानों की आयों में वृद्धि होगी। कृषि क्षेत्र में शोध एवं नई तकनीकी को बढ़ावा मिलेगा। किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा 30 दिन की अवधि में स्थानीय स्तर पर करना होगा।
किसानों की आपत्तियां है कि भारत का किसान कम पढ़ा लिखा है जिससे निजी कंपनियां मनमाने कांटेक्ट करेंगी। अनुबंधित समझौते में किसान का पक्ष कमजोर होगा। पारंपरिक ज्ञान समाप्त हो जाएगा। अंधाधुंध रसायनिक खादों के उपयोग के कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी समाप्त हो जाएगी। विवाद की स्थिति में कंपनियों के पास बड़े-बड़े वकील होंगे लेकिन किसानों के पास बड़े-बड़े वकीलों का खर्च निर्वहन वह नहीं कर पाएंगे। जिसके कारण जीत बड़ी-बड़ी कंपनियों की ही होगी।
निष्कर्ष स्वरूप हम कह सकते हैं कि किसानों की शंकाये भी जायज हैं सरकार को कोई ऐसा कानून लाना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि आपकी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम की कीमत पर कोई भी व्यापारी नहीं खरीद सकता है। यदि कोई व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर उपज खरीदता है तो वह दंडनीय अपराध होगा।
विवादों का निपटारा स्थानीय स्तर पर ना होकर यदि सीधे न्यायालय से हो तो किसानों के लिए ज्यादा हितकर होगा। आने वाला समय ही बताएगा कि किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर होगा या उसकी आय दोगुनी होगी। लेकिन किसानों की समस्याओं के लिए यह आवश्यक है कि कुछ ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।


0 टिप्पणियाँ
Please don't enter any spam link in the comment Box.